TITUS
Asvaghosa, Buddhacarita
Part No. 16
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Ucchvasa: 16 
Strophe in ed. EBC: 1 
Verse: a     मै॑त्रीयवर्गीयमुखां
   
मैत्रीयवर्गीयमुखाम्

Verse: b    
सर्वावतीं च पार्षदं ।
   
स॑र्वावतीम् पार्षदम्

Verse: c    
स॑ सर्वज्ञः शाक्यसंहो
   
सर्वज्ञः शाक्यसंहः

Verse: d    
धर्मचक्रमवर्तयत् ।। १६.१ ।।
   
ध॑र्मचक्रम् अवर्तयत् ।। १६.१ ।।

Strophe in ed. EBC: 2 
Verse: a    
शृ॑णु मैत्रीयवर्गीय
   
शृणु मैत्रीयवर्गीय

Verse: b    
पार्षद्गणसमन्वित ।
   
पा॑र्षद्गणसमन्वित

Verse: c    
य॑थातीतैस्तैर्मुनिंद्रैर्
   
यथा अतीतैः तैः मुनिन्द्रैः

Verse: d    
व्याख्यातं तन्मयाधुना ।। १६.२ ।।
   
व्या॑ख्यातम् तत् मयाधुना ।। १६.२ ।।

Strophe in ed. EBC: 3 
Verse: a    
द्वा॑विमौ भिक्षवो ऽंतौ हि
   
द्वौ इमौ भिक्षवः अन्तौ हि

Verse: b    
प्रव्रजितस्य संवरे ।
   
प्र॑व्रजितस्य संवरे

Verse: c    
यः॑ कामसुखसंरक्तो
   
यः कामसुखसंरक्तः

Verse: d    
ग्राम्यः पार्थग्जनो ऽपि च ।। १६.३ ।।
   
ग्रा॑म्यः पार्थग्जनः अपि ।। १६.३ ।।

Strophe in ed. EBC: 4 
Verse: a    
य॑श्चात्मक्लेशसंताप
   
यः आत्मक्लेशसंताप

Verse: b    
दुःखातिवेदनाहतः ।
   
दुः॑खातिवेदनाहतः

Verse: c    
ए॑तौ प्रव्रजितस्यांतौ
   
एतौ प्रव्रजितस्य अन्तौ

Verse: d    
ह्यनार्यानर्थसंरतौ ।। १६.४ ।।
   
हि अनार्यानर्थसंरतौ ।। १६.४ ।।

Strophe in ed. EBC: 5 
Verse: a    
ए॑तौ न ब्रह्मचर्यायां
   
एतौ ब्रह्मचर्यायाम्

Verse: b    
न विरागे न संवरे ।
   
विरागे संवरे

Verse: c    
न॑ निर्वेदे निरोधे च
   
निर्वेदे निरोधे

Verse: d    
विमुक्तिसाधने ऽपि न ।। १६.५ ।।
   
वि॑मुक्तिसाधने अपि ।। १६.५ ।।

Strophe in ed. EBC: 6 
Verse: a    
ना॑भिज्ञासु न बोधौ च
   
अभिज्ञासु बोधौ

Verse: b    
न निर्वाणे ऽभिवर्तिनौ ।
   
निर्वाणे अभिवर्तिनौ

Verse: c    
यः॑ कायक्लमदुः खानु
   
यः कायक्लमदुः खानु

Verse: d    
योगानर्थोपसंहितः ।। १६.६ ।।
   
यो॑गानर्थोपसंहितः ।। १६.६ ।।

Strophe in ed. EBC: 7 
Verse: a    
दृ॑ष्टधर्मे सुखे दुःखे
   
दृष्टधर्मे सुखे दुःखे

Verse: b    
आयत्यां निरतोत्सवः ।
   
आ॑यत्याम् निरतोत्सवः

Verse: c    
म॑ध्यां प्रतिपदं ह्येताम्
   
मध्याम् प्रतिपदम् हि एताम्

Verse: d    
अनुगम्य जगद्धिते ।। १६.७ ।।
   
अ॑नुगम्य जगद्धिते ।। १६.७ ।।

Strophe in ed. EBC: 8 
Verse: a    
त॑थागतो जगच्छास्ता
   
तथागतः जगच्छास्ता

Verse: b    
सद्धर्मं समुपादिशेत् ।
   
स॑द्धर्मम् समुपादिशेत्

Verse: c    
य॑दार्यसत्यमारभ्य
   
यत् आर्यसत्यम् आरभ्य

Verse: d    
सद्धर्मसंप्रकाशनं ।। १६.८ ।।
   
स॑द्धर्मसंप्रकाशनम् ।। १६.८ ।।

Strophe in ed. EBC: 9 
Verse: a    
आ॑र्याष्टांगिकमार्गं च
   
आर्याष्टाङ्गिकमार्गम्

Verse: b    
संबुद्धः समुपादिशेत् ।
   
सं॑बुद्धः समुपादिशेत्

Verse: c    
त॑थाहमपि संबुद्धस्
   
तथा अहम् अपि संबुद्धः

Verse: d    
तथागतो ऽधुना भवे ।। १६.९ ।।
   
त॑थागतः अधुना भवे ।। १६.९ ।।

Strophe in ed. EBC: 10 
Verse: a    
त॑दार्यसत्यमारभ्य
   
तत् आर्यसत्यम् आरभ्य

Verse: b    
देशेयं धर्ममुत्तमं ।
   
दे॑शेयम् धर्मम् उत्तमम्

Verse: c    
आ॑र्याष्टांगिकमार्गं च
   
आर्याष्टाङ्गिकमार्गम्

Verse: d    
संबुद्धज्ञानसाधनं ।। १६.१० ।।
   
सं॑बुद्धज्ञानसाधनम् ।। १६.१० ।।

Strophe in ed. EBC: 11 
Verse: a    
उ॑पदिश्य जगल्लोकं
   
उपदिश्य जगल्लोकम्

Verse: b    
दर्शयेयं सुनिर्वृतिं ।
   
द॑र्शयेयम् सुनिर्वृतिम्

Verse: c    
त॑दार्यसत्यमादौ तच्
   
तत् आर्यसत्यमादौ तत्

Verse: d    
छ्रोतव्यं ज्ञेयमात्मना ।। १६.११ ।।
   
श्रो॑तव्यम् ज्ञेयम् आत्मना ।। १६.११ ।।

Strophe in ed. EBC: 12 
Verse: a    
त॑त्परिज्ञाय साक्षाच्च
   
तत् परिज्ञाय साक्षात्

Verse: b    
कर्तव्यं ब्रह्मचारिभिः ।
   
क॑र्तव्यम् ब्रह्मचारिभिः

Verse: c    
य॑न्मयात्र स्वयं बुद्धं
   
यत् मया अत्र स्वयम् बुद्धम्

Verse: d    
सर्वबुद्धप्रसादतः ।। १६.१२ ।।
   
स॑र्वबुद्धप्रसादतः ।। १६.१२ ।।

Strophe in ed. EBC: 13 
Verse: a    
ज्ञा॑त्वार्याष्टांगमार्गं च
   
ज्ञात्वा आर्याष्टाङ्गमार्गम्

Verse: b    
धृत्वा साक्षात्कृतं मुदा ।
   
धृ॑त्वा साक्षात्कृतम् मुदा

Verse: c    
त॑थाहं प्रथमं वो ऽत्र
   
तथा अहम् प्रथमम् वः अत्र

Verse: d    
विमुक्तिपदसाधनं ।। १६.१३ ।।
   
वि॑मुक्तिपदसाधनम् ।। १६.१३ ।।

Strophe in ed. EBC: 14 
Verse: a    
आ॑र्यसत्यं समारभ्य
   
आर्यसत्यम् समारभ्य

Verse: b    
समुपाख्ये सुसंवरं ।
   
स॑मुपाख्ये सुसंवरम्

Verse: c    
त॑दत्र सर्वधर्माणाम्
   
तत् अत्र सर्वधर्माणाम्

Verse: d    
आर्यसत्यमिदं वरं ।। १६.१४ ।।
   
आ॑र्यसत्यम् इदम् वरम् ।। १६.१४ ।।

Strophe in ed. EBC: 15 
Verse: a    
आ॑र्याष्टांगिकमार्गं च
   
आर्याष्टाङ्गिकमार्गम्

Verse: b    
धृत्वा चरध्वमाभवं ।
   
धृ॑त्वा चरध्वम् आभवम्

Verse: c    
ए॑तद्धि परमं धर्मम्
   
एतत् हि परमम् धर्मम्

Verse: d    
आर्यसत्यं सुमुक्तये ।। १६.१५ ।।
   
आ॑र्यसत्यम् सुमुक्तये ।। १६.१५ ।।

Strophe in ed. EBC: 16 
Verse: a    
म॑त्वार्याष्टांगमार्गं च
   
मत्वा आर्याष्टाङ्गमार्गम्

Verse: b    
धृत्वा चरत संवरं ।
   
धृ॑त्वा चरत संवरम्

Verse: c    
ए॑तदन्ये ऽपरिज्ञाय
   
एतत् अन्ये अपरिज्ञाय

Verse: d    
प्रवादिनो ऽभिमानिकाः ।। १६.१६ ।।
   
प्र॑वादिनः अभिमानिकाः ।। १६.१६ ।।

Strophe in ed. EBC: 17 
Verse: a    
सं॑सारसाधनं धर्मं
   
संसारसाधनम् धर्मम्

Verse: b    
प्रवदंति निजेच्छया ।
   
प्र॑वदन्ति निजेच्छया

Verse: c    
के॑चिदात्मैव संपाल्यस्
   
केचित् आत्म एव संपाल्यः

Verse: d    
तत्पुण्यं मुक्तिकारणं ।। १६.१७ ।।
   
त॑त् पुण्यम् मुक्तिकारणम् ।। १६.१७ ।।

Strophe in ed. EBC: 18 
Verse: a    
के॑चित्स्वभाविकं सर्वं
   
केचित् स्वभाविकम् सर्वम्

Verse: b    
केचित्पूर्वकृतं पलं ।
   
के॑चित् पूर्वकृतम् पलम्

Verse: c    
के॑चिच्चापीश्वराधीनम्
   
केचित् अपीश्वराधीनम्

Verse: d    
इत्येवं प्रवदंत्यपि ।। १६.१८ ।।
   
इ॑ति एवम् प्रवदन्ति अपि ।। १६.१८ ।।

Strophe in ed. EBC: 19 
Verse: a    
आ॑त्मनश्चेत्सुखाद्दुःखात्
   
आत्मनः चेत् सुखाद्दुःखात्

Verse: b    
पुण्यं पापं प्रजायते ।
   
पु॑ण्यम् पापम् प्रजायते

Verse: c    
क॑थं न भद्रता नित्यं
   
कथम् भद्रता नित्यम्

Verse: d    
धर्माभावे ऽपि देहिनां ।। १६.१९ ।।
   
ध॑र्माभावे अपि देहिनाम् ।। १६.१९ ।।

Strophe in ed. EBC: 20 
Verse: a    
रू॑पसौभाग्यभाग्यादि
   
रूपसौभाग्यभाग्यादि

Verse: b    
भेदः कथमिहेष्यते ।
   
भे॑दः कथम् इह इष्यते

Verse: c    
य॑दि पूर्वकृतं नास्ति
   
यदि पूर्वकृतम् अस्ति

Verse: d    
कथमत्र शुभाशुभे ।। १६.२० ।।
   
क॑थम् अत्र शुभाशुभे ।। १६.२० ।।

Strophe in ed. EBC: 21 
Verse: a    
क॑र्मणां कर्म हेतुश्चेत्
   
कर्मणाम् कर्म हेतुः चेत्

Verse: b    
को ऽत्र सारं प्रकल्पयेत् ।
   
कः अत्र सारम् प्रकल्पयेत्

Verse: c    
स्वा॑भाविकं जगत्स्याच्चेत्
   
स्वाभाविकम् जगत् स्यात् चेत्

Verse: d    
कः कर्मस्वकतां वदेत् ।। १६.२१ ।।
   
कः कर्मस्वकतां वदेत् ।। १६.२१ ।।

Strophe in ed. EBC: 22 
Verse: a    
सु॑खं हेतुसुखं स्याच्चेद्
   
सुखम् हेतुसुखम् स्यात् चेत्

Verse: b    
दुःखं दुःखस्य हेतु हि ।
   
दुः॑खम् दुःखस्य हेतु हि

Verse: c    
त॑पसा दुष्करेणैव
   
तपसा दुष्करेण एव

Verse: d    
कथं मुक्तिर्भवेद्भवात् ।। १६.२२ ।।
   
क॑थम् मुक्तिः भवेत् भवात् ।। १६.२२ ।।

Strophe in ed. EBC: 23 
Verse: a    
अै॑श्चरः कारणं केचिद्
   
अैश्चरः कारणम् केचित्

Verse: b    
अबुधाः संप्रचक्षते ।
   
अ॑बुधाः संप्रचक्षते

Verse: c    
क॑थं न समता लोके
   
कथम् समता लोके

Verse: d    
समवर्तीश्वरो हि सः ।। १६.२३ ।।
   
स॑मवर्तीश्वरः हि सः ।। १६.२३ ।।

Strophe in ed. EBC: 24 
Verse: a    
इ॑त्येवमबुधाः केचिद्
   
इति एवम् अबुधाः केचित्

Verse: b    
अस्ति नास्ति प्रवादिनः ।
   
अ॑स्ति अस्ति प्रवादिनः

Verse: c    
कु॑दृष्टिकर्मतो हीना
   
कुदृष्टिकर्मतः हीना

Verse: d    
जायंते नरकेष्विह ।। १६.२४ ।।
   
जा॑यन्ते नरकेषु इह ।। १६.२४ ।।

Strophe in ed. EBC: 25 
Verse: a    
सु॑दृष्टिकर्मतो भद्रा
   
सुदृष्टिकर्मतः भद्राः

Verse: b    
आर्यज्ञानप्रवेदिनं ।
   
आ॑र्यज्ञानप्रवेदिनम्

Verse: c    
स्व॑र्गलोके गताः संतः
   
स्वर्गलोके गताः सन्तः

Verse: d    
कायवाक्चित्तसंयमात् ।। १६.२५ ।।
   
का॑यवाक्चित्तसंयमात् ।। १६.२५ ।।

Strophe in ed. EBC: 26 
Verse: a    
स॑र्वो भवरतो लोकः
   
सर्वः भवरतः लोकः

Verse: b    
क्लेशसंघैर्निहन्यतो ।
   
क्ले॑शसङ्घैः निहन्यतः

Verse: c    
ज॑राव्याधिविपद्ध्रातो
   
जराव्याधिविपद्ध्रातः

Verse: d    
मृतः पुनः प्रजायते ।। १६.२६ ।।
   
मृ॑तः पुनर् प्रजायते ।। १६.२६ ।।

Strophe in ed. EBC: 27 
Verse: a    
सं॑त्यत्र बहवः प्राज्ञाः
   
सन्ति अत्र बहवः प्राज्ञाः

Verse: b    
संवृत्तिधर्मवादिनः ।
   
सं॑वृत्तिधर्मवादिनः

Verse: c    
ए॑को ऽपि विद्यते नात्र
   
एकः अपि विद्यते अत्र

Verse: d    
सुनिर्वृत्तिविधानवित् ।। १६.२७ ।।
   
सु॑निर्वृत्तिविधानवित् ।। १६.२७ ।।

Strophe in ed. EBC: 28 
Verse: a    
पं॑चस्कंधमयं देहं
   
पञ्चस्कन्धम् अयम् देहम्

Verse: b    
पंचभूतसमुद्धवं ।
   
प॑ञ्चभूतसमुद्धवम्

Verse: c    
शू॑न्यमनात्मकं सर्वं
   
शून्यमनात्मकम् सर्वम्

Verse: d    
प्रतीत्योत्पादसंभवं ।। १६.२८ ।।
   
प्र॑तीत्य उत्पादसंभवम् ।। १६.२८ ।।

Strophe in ed. EBC: 29 
Verse: a    
त॑त्प्रतीत्य समुत्पादं
   
तत् प्रतीत्य समुत्पादम्

Verse: b    
संवृत्तिधर्मसाधनं ।
   
सं॑वृत्तिधर्मसाधनम्

Verse: c    
त॑त्क्रमसं निरोधं हि
   
तत् क्रमसम् निरोधम् हि

Verse: d    
निर्वृत्तिपदसाधनं ।। १६.२९ ।।
   
नि॑र्वृत्तिपदसाधनम् ।। १६.२९ ।।

Strophe in ed. EBC: 30 
Verse: a    
इ॑ति विज्ञाय यः कर्तुं
   
इति विज्ञाय यः कर्तुम्

Verse: b    
जगद्धितं समिच्छति ।
   
ज॑गद्धितम् समिच्छति

Verse: c    
स॑ प्रतीत्य समुत्पादं
   
प्रतीत्य समुत्पादम्

Verse: d    
धृत्वा संबोधिमानसः ।। १६.३० ।।
   
धृ॑त्वा संबोधिमानसः ।। १६.३० ।।

Strophe in ed. EBC: 31 
Verse: a    
बो॑धिचर्याव्रतं धृत्वा
   
बोधिचर्याव्रतम् धृत्वा

Verse: b    
चतुर्ब्रह्मविहारभृत् ।
   
च॑तुर्ब्रह्मविहारभृत्

Verse: c    
स॑र्वसत्त्वहितं कृवन्
   
सर्वसत्त्वहितम् कृवन्

Verse: d    
संचरतां सदा भवे ।। १६.३१ ।।
   
सं॑चरताम् सदा भवे ।। १६.३१ ।।

Strophe in ed. EBC: 32 
Verse: a    
त॑तो ऽर्हन्सकलान्दुष्टाञ्
   
ततः अर्हन् सकलान् दुष्टान्

Verse: b    
जित्वा मारगणानपि ।
   
जि॑त्वा मारगणान् अपि

Verse: c    
त्रि॑विधां बोधिमासाद्य
   
त्रिविधाम् बोधिम् आसाद्य

Verse: d    
संयास्यति सुनिर्वृतिं ।। १६.३२ ।।
   
सं॑यास्यति सुनिर्वृतिम् ।। १६.३२ ।।

Strophe in ed. EBC: 33 
Verse: a    
अ॑थ यो ऽत्र विरक्तात्मा
   
अथ यः अत्र विरक्तात्मा

Verse: b    
संसारगतिनिःस्पृहः ।
   
सं॑सारगतिनिःस्पृहः

Verse: c    
स॑ प्रतीत्य समुत्पादं
   
प्रतीत्य समुत्पादम्

Verse: d    
क्रमेण संनिरोधयेत् ।। १६.३३ ।।
   
क्र॑मेण संनिरोधयेत् ।। १६.३३ ।।

Strophe in ed. EBC: 34 
Verse: a    
सं॑निरुद्धे क्रमेणास्मिन्
   
संनिरुद्धे क्रमेण अस्मिन्

Verse: b    
प्रतीत्योत्पादसंभवे ।
   
प्र॑तीत्य उत्पादसंभवे

Verse: c    
नि॑रंजनो निरालंबः
   
निरञ्जनः निरालंबः

Verse: d    
सुनिर्वृतिं समाप्नुयात् ।। १६.३४ ।।
   
सु॑निर्वृतिम् समाप्नुयात् ।। १६.३४ ।।

Strophe in ed. EBC: 35 
Verse: a    
शृ॑णुत श्रेयसे सर्वे
   
शृणुत श्रेयसे सर्वे

Verse: b    
यूयं निर्मलमानसाः ।
   
यू॑यम् निर्मलमानसाः

Verse: c    
त॑त्प्रतीत्य समुत्पादं
   
तत् प्रतीत्य समुत्पादम्

Verse: d    
वक्ष्यामि वो यथाक्रमं ।। १६.३५ ।।
   
व॑क्ष्यामि वः यथा अक्रमम् ।। १६.३५ ।।

Strophe in ed. EBC: 36 
Verse: a    
अ॑विद्यावासनैवेयं
   
अविद्यावासना एव इयम्

Verse: b    
दुःखस्कंधस्य भूयसः ।
   
दुः॑खस्कन्धस्य भूयसः

Verse: c    
सं॑सारविषवृक्षस्य
   
संसारविषवृक्षस्य

Verse: d    
मूलबंधविधायिनी ।। १६.३६ ।।
   
मू॑लबन्धविधायिनी ।। १६.३६ ।।

Strophe in ed. EBC: 37 
Verse: a    
त॑त्प्रत्ययास्तु संस्काराः
   
तत् प्रत्ययास्तु संस्काराः

Verse: b    
कायवाङ्मानसात्मकाः ।
   
का॑यवाङ्मानसात्मकाः

Verse: c    
सं॑स्कारोत्थं च विज्ञानं
   
संस्कारोत्थम् विज्ञानम्

Verse: d    
मनःषष्ठेंद्रियात्मकं ।। १६.३७ ।।
   
म॑नःषष्ठेण्द्रियात्मकम् ।। १६.३७ ।।

Strophe in ed. EBC: 38 
Verse: a    
त॑त्प्रत्ययं नामरूपं
   
तत् प्रत्ययम् नामरूपम्

Verse: b    
संज्ञासंदर्शनाभिधं ।
   
सं॑ज्ञासंदर्शनाभिधम्

Verse: c    
म॑नःषष्ठेंद्रियस्थानं
   
मनःषष्ठेन्द्रियस्थानम्

Verse: d    
षडायतनमप्यतः ।। १६.३८ ।।
   
ष॑डायतनम् अप्यतः ।। १६.३८ ।।

Strophe in ed. EBC: 39 
Verse: a    
ष॑डायतनसंश्लेषः
   
षडायतनसंश्लेषः

Verse: b    
स्पर्श इत्यभि धीयते ।
   
स्प॑र्शः इति अभि धीयते

Verse: c    
ष॑ट्स्पर्शानुभवो यश्च
   
षट्स्पर्शानुभवः यः

Verse: d    
वेदना सा प्रकीर्तिता ।। १६.३९ ।।
   
वे॑दना सा प्रकीर्तिता ।। १६.३९ ।।

Strophe in ed. EBC: 40 
Verse: a    
त॑या विषयसंक्लेश
   
तया विषयसंक्लेश

Verse: b    
रागस्तृष्णा प्रजायते ।
   
रा॑गः तृष्णा प्रजायते

Verse: c    
का॑मादिषु तदुद्धूतम्
   
कामादिषु तत् उद्धूतम्

Verse: d    
उपादानं प्रवर्तते ।। १६.४० ।।
   
उ॑पादानम् प्रवर्तते ।। १६.४० ।।

Strophe in ed. EBC: 41 
Verse: a    
उ॑पादानोद्भवः काम
   
उपादानोद्भवः काम

Verse: b    
रूपारूपमयो भवः ।
   
रू॑पारूपमयः भवः

Verse: c    
ना॑नायोनिपरावृत्त्या
   
नानायोनिपरावृत्त्या

Verse: d    
जातिर्भवसमुद्धवा ।। १६.४१ ।।
   
जा॑तिः भवसमुद्धवा ।। १६.४१ ।।

Strophe in ed. EBC: 42 
Verse: a    
ज॑रामरणशोकादि
   
जरामरणशोकादि

Verse: b    
संततिर्जातिसंश्रया ।
   
सं॑ततिः जातिसंश्रया

Verse: c    
अ॑विद्यादिनिरोधेन
   
अविद्यादिनिरोधेन

Verse: d    
तेषां व्युपरतिक्रमः ।। १६.४२ ।।
   
ते॑षाम् व्युपरतिक्रमः ।। १६.४२ ।।


Strophe in ed. EBC: 43 
Verse: a    
प्र॑तीत्योत्पादो ऽयं बहुगतिरविद्याकृतपदः
   
प्रतीत्य उत्पादः अयम् बहुगतिः अविद्याकृतपदः

Verse: b    
स चंत्यो युष्माभिर्विजन विश्रामशमिभिः ।
   
स॑ चन्त्यः युष्माभिः विजनः विश्रामशमिभिः ।

Verse: c    
प॑रिज्ञातः सम्यग्ब्रजति किल कालेन तनुतां ।
   
प॑रिज्ञातः सम्यक् ब्रजति किल कालेन तनुताम्

Verse: d    
न॑नुत्वं संप्राप्तः सुखतरनिवृत्तिश्च भवति ।। १६.४३ ।।
   
न॑नुत्वम् संप्राप्तः सुखतरनिवृत्तिः भवति ।। १६.४३ ।।


Strophe in ed. EBC: 44 
Verse: a    
इ॑ति विज्ञाय युष्माभिर्
   
इति विज्ञाय युष्माभिः

Verse: b    
भवबंधविमुक्तये ।
   
भ॑वबन्धविमुक्तये

Verse: c    
अ॑विद्या दुःखमूलं सं
   
अविद्या दुःखमूलम् सं

Verse: d    
छेदितव्यं प्रयत्नतः ।। १६.४४ ।।
   
छे॑दितव्यम् प्रयत्नतः ।। १६.४४ ।।

Strophe in ed. EBC: 45 
Verse: a    
त॑तो यूयं विनिर्मुक्त
   
ततः यूयम् विनिर्मुक्त

Verse: b    
भवचाराभिबंधनाः ।
   
भ॑वचाराभिबन्धनाः

Verse: c    
अ॑र्हंतो निर्मलात्मानो
   
अर्हन्तः निर्मलात्मानः

Verse: d    
निर्वृत्तिं समवाप्स्यथ ।। १६.४५ ।।
   
नि॑र्वृत्तिम् समवाप्स्यथ ।। १६.४५ ।।

Strophe in ed. EBC: 46 
Verse: a    
इ॑त्यादिष्टं मुनींद्रेण
   
इति आदिष्टम् मुनीन्द्रेण

Verse: b    
श्रुत्वा सर्वे ऽपि भिक्षवः ।
   
श्रु॑त्वा सर्वे अपि भिक्षवः

Verse: c    
प्र॑वृत्तिं च निवृत्तिं च
   
प्रवृत्तिम् निवृत्तिम्

Verse: d    
संसारस्याभिमेनिरे ।। १६.४६ ।।
   
सं॑सारस्य अभिमेनिरे ।। १६.४६ ।।

Strophe in ed. EBC: 47 
Verse: a    
त॑न्निशम्य तदा तेषां
   
तत् निशम्य तदा तेषाम्

Verse: b    
पंचानां ब्रह्मचारिणां ।
   
प॑ञ्चानाम् ब्रह्मचारिणाम्

Verse: c    
सं॑बोधिज्ञानसंप्राप्त्यै
   
संबोधिज्ञानसंप्राप्त्यै

Verse: d    
प्रज्ञाचक्षुर्विशोधितं ।। १६.४७ ।।
   
प्र॑ज्ञाचक्षुः विशोधितम् ।। १६.४७ ।।

Strophe in ed. EBC: 48 
Verse: a    
ष॑ष्टीनां देवकोटीनां
   
षष्टीनाम् देवकोटीनाम्

Verse: b    
धर्मचक्षुर्विशोधितं ।
   
ध॑र्मचक्षुर्विशोधितम्

Verse: c    
अ॑शीतिब्रह्मकोटीनां
   
अशीतिब्रह्मकोटीनाम्

Verse: d    
ज्ञानचक्षुर्विशोधितं ।। १६.४८ ।।
   
ज्ञा॑नचक्षुर्विशोधितम् ।। १६.४८ ।।

Strophe in ed. EBC: 49 
Verse: a    
अ॑शीतिनृसहस्राणां
   
अशीतिनृसहस्राणाम्

Verse: b    
धर्मचक्षुर्विशोधितं ।
   
ध॑र्मचक्षुः विशोधितम्

Verse: c    
स॑र्वेषामपि सत्त्वानां
   
सर्वेषाम् अपि सत्त्वानाम्

Verse: d    
धर्मोत्साहां विरोचितं ।। १६.४९ ।।
   
ध॑र्मोत्साहाम् विरोचितम् ।। १६.४९ ।।

Strophe in ed. EBC: 50 
Verse: a    
अ॑पाया अपि सर्वत्र
   
अपायाः अपि सर्वत्र

Verse: b    
सर्वे ऽपि प्रशमं गताः ।
   
स॑र्वे अपि प्रशमम् गताः

Verse: c    
स॑द्धर्मसाधनोत्साहं
   
सद्धर्मसाधनोत्साहम्

Verse: d    
प्रावर्तत समंततः ।। १६.५० ।।
   
प्रा॑वर्तत समन्ततः ।। १६.५० ।।

Strophe in ed. EBC: 51 
Verse: a    
अं॑तरिक्षे ऽपि सर्वत्र
   
अन्तरिक्षे अपि सर्वत्र

Verse: b    
त्रिदशाः साप्सरोगणाः ।
   
त्रि॑दशाः साप्सरोगणाः

Verse: c    
ए॑वं भद्र महोत्माह
   
एवम् भद्र महोत्माह

Verse: d    
निर्घोषं संव्यसारयन् ।। १६.५१ ।।
   
नि॑र्घोषम् संव्यसारयन् ।। १६.५१ ।।

Strophe in ed. EBC: 52 
Verse: a    
मै॑त्रेयो ऽथ महाभिक्षो
   
मैत्रेयः अथ महाभिक्षः

Verse: b    
भगवंतं व्यजिज्ञपत् ।
   
भ॑गवन्तम् व्यजिज्ञपत्

Verse: c    
कि॑यद्रूपं भगवता
   
कियद्रूपम् भगवता

Verse: d    
धर्मचक्रं प्रवर्तितं ।। १६.५२ ।।
   
ध॑र्मचक्रम् प्रवर्तितम् ।। १६.५२ ।।

Strophe in ed. EBC: 53 
Verse: a    
इ॑ति संप्रार्थितं तेन
   
इति संप्रार्थितम् तेन

Verse: b    
मैत्रेयेण महात्मना ।
   
मै॑त्रेयेण महात्मना

Verse: c    
श्रु॑त्वा स भगवान्पश्यन्
   
श्रुत्वा भगवान् पश्यन्

Verse: d    
मैत्रेयमेवमादिशत् ।। १६.५३ ।।
   
मै॑त्रेयम् एवम् आदिशत् ।। १६.५३ ।।

Strophe in ed. EBC: 54 
Verse: a    
गं॑भीरं दुर्दृशं सूक्ष्मं
   
गंभीरम् दुर्दृशम् सूक्ष्मम्

Verse: b    
धर्मचक्रं प्रवर्तितं ।
   
ध॑र्मचक्रम् प्रवर्तितम्

Verse: c    
य॑त्र सर्वं न गाहंते
   
यत्र सर्वम् गाहन्ते

Verse: d    
तीर्थिकाः परिवादिकाः ।। १६.५४ ।।
   
ती॑र्थिकाः परिवादिकाः ।। १६.५४ ।।

Strophe in ed. EBC: 55 
Verse: a    
निः॑प्रपंचमनुत्पादम्
   
निःप्रपञ्चम् अनुत्पादम्

Verse: b    
असंभवमनालयं ।
   
अ॑संभवम् अनालयम्

Verse: c    
वि॑विक्तं प्रकृतिशून्यं
   
विविक्तम् प्रकृतिशून्यम्

Verse: d    
धर्मचक्रं प्रवर्तितं ।। १६.५५ ।।
   
ध॑र्मचक्रम् प्रवर्तितम् ।। १६.५५ ।।

Strophe in ed. EBC: 56 
Verse: a    
ना॑नाव्यूहमनिर्व्यूहम्
   
नानाव्यूहम् अनिर्व्यूहम्

Verse: b    
अनिमित्रमलक्षणं ।
   
अ॑निमित्रम् अलक्षणम्

Verse: c    
स॑मताधर्मनिर्देशं
   
समताधर्मनिः देशम्

Verse: d    
चक्रं बुद्धेन वर्णितं ।। १६.५६ ।।
   
च॑क्रम् बुद्धेन वर्णितम् ।। १६.५६ ।।

Strophe in ed. EBC: 57 
Verse: a    
मा॑यामरीचिस्वप्नाभं
   
मायामरीचिस्वप्नाभम्

Verse: b    
जलेंदुप्रतिनादवत् ।
   
ज॑लेन्दुप्रतिनादवत्

Verse: c    
प्र॑तीत्य धर्ममुत्तानम्
   
प्रतीत्य धर्मम् उत्तानम्

Verse: d    
अनुच्छेदमशाश्वतं ।। १६.५७ ।।
   
अ॑नुच्छेदम् अशाश्वतम् ।। १६.५७ ।।

Strophe in ed. EBC: 58 
Verse: a    
स॑र्वदृष्टिसमुच्छिन्नं
   
सर्वदृष्टिसमुच्छिन्नम्

Verse: b    
धर्मचक्रमिति स्मृतं ।
   
ध॑र्मचक्रम् इति स्मृतम्

Verse: c    
आ॑काशेन सदा तुल्यं
   
आकाशेन सदा तुल्यम्

Verse: d    
निर्विकल्पं प्रभास्वरं ।। १६.५८ ।।
   
नि॑र्विकल्पम् प्रभास्वरम् ।। १६.५८ ।।

Strophe in ed. EBC: 59 
Verse: a    
अ॑नंतमध्यनिर्देशं
   
अनन्तमध्यनिर्देशम्

Verse: b    
धर्मचक्रमिहोच्यते ।
   
ध॑र्मचक्रम् इह उच्यते

Verse: c    
अ॑स्तिनास्तिविनिर्मुक्तम्
   
अस्तिनअस्तिविनिर्मुक्तम्

Verse: d    
आत्मनैरात्म्यवर्जितं ।। १६.५९ ।।
   
आ॑त्मनैः आत्म्यवर्जितम् ।। १६.५९ ।।

Strophe in ed. EBC: 60 
Verse: a    
प्र॑कृत्या जातनिर्देशं
   
प्रकृत्या जातनिर्देशम्

Verse: b    
धर्मचक्रमिदं स्मृतं ।
   
ध॑र्मचक्रम् इदम् स्मृतम्

Verse: c    
भू॑तकोटिमकोटिं च
   
भूतकोटिम् अकोटिम्

Verse: d    
तथतातत्त्वभावकं ।। १६.६० ।।
   
त॑थतातत्त्वभावकम् ।। १६.६० ।।

Strophe in ed. EBC: 61 
Verse: a    
अ॑द्वयधर्मनिर्देशं
   
अद्वयधर्मनिर्देशम्

Verse: b    
धर्मचक्रमिति स्मृतं ।
   
ध॑र्मचक्रम् इति स्मृतम्

Verse: c    
च॑क्षुः स्वभावतः शुन्यं
   
चक्षुः स्वभावतः शुन्यम्

Verse: d    
रोत्रं घ्राणं तथैव च ।। १६.६१ ।।
   
श्रो॑त्रम् घ्राणम् तथ एव ।। १६.६१ ।।

Strophe in ed. EBC: 62 
Verse: a    
जि॑ह्वाकायमनः शून्यम्
   
जिह्वाकायमनः शून्यम्

Verse: b    
अनात्मकं निरीहकं ।
   
अ॑नात्मकम् निरीहकम्

Verse: c    
इ॑दं तदीदृशं धर्म
   
इदम् तत् ईदृशम् धर्म

Verse: d    
चक्रं मया प्रवर्तितं ।। १६.६२ ।।
   
च॑क्रम् मया प्रवर्तितम् ।। १६.६२ ।।

Strophe in ed. EBC: 63 
Verse: a    
बो॑धयत्यबुधान्सर्वांस्
   
बोधयति अबुधान् सर्वान्

Verse: b    
तेन बुद्धो निरुच्यते ।
   
ते॑न बुद्धः निरुच्यते

Verse: c    
स्व॑यं मयानुबुद्धो ऽयं
   
स्वयम् मया अनुबुद्धः अयम्

Verse: d    
स्वभावधर्मलक्षणः ।। १६.६३ ।।
   
स्व॑भावधर्मलक्षणः ।। १६.६३ ।।

Strophe in ed. EBC: 64 
Verse: a    
ऋ॑ते परोपदेशेन
   
ऋते परोपदेशेन

Verse: b    
स्वयंभूस्तेन कथ्यते ।
   
स्व॑यंभूः तेन कथ्यते

Verse: c    
स॑र्वधर्मवशिप्राप्तो
   
सर्वधर्मवशिप्राप्तः

Verse: d    
धर्मस्वामीति संस्मृतः ।। १६.६४ ।।
   
ध॑र्मस्वामी इति संस्मृतः ।। १६.६४ ।।

Strophe in ed. EBC: 65 
Verse: a    
न॑यानयज्ञो धर्मेषु
   
नयानयज्ञः धर्मेषु

Verse: b    
नायकस्तेन कथ्यते ।
   
ना॑यकः तेन कथ्यते

Verse: c    
य॑था भवंति वैनेया
   
यथा भवन्ति वैनेयाः

Verse: d    
विनयत्यमिताञ्जनान् ।। १६.६५ ।।
   
वि॑नयति अमितान् जनान् ।। १६.६५ ।।

Strophe in ed. EBC: 66 
Verse: a    
वि॑नयपारमिताप्राप्तस्
   
विनयपारमिताप्राप्तः

Verse: b    
तेन प्रोक्तो विनायकः ।
   
ते॑न प्रोक्तः विनायकः

Verse: c    
स॑त्त्वानां नष्टमार्गाणां
   
सत्त्वानाम् नष्टमार्गाणाम्

Verse: d    
सन्मार्गोत्तमदेशनात् ।। १६.६६ ।।
   
स॑न्मार्गोत्तमदेशनात् ।। १६.६६ ।।

Strophe in ed. EBC: 67 
Verse: a    
स॑न्नयपारमिताप्राप्तः
   
सन्नयपारमिताप्राप्तः

Verse: b    
सर्वधर्मविनायकः ।
   
स॑र्वधर्मविनायकः

Verse: c    
सं॑ग्रहवस्तुज्ञानेन
   
संग्रहवस्तुज्ञानेन

Verse: d    
संगृह्य सर्वप्राणिनः ।। १६.६७ ।।
   
सं॑गृह्य सर्वप्राणिनः ।। १६.६७ ।।

Strophe in ed. EBC: 68 
Verse: a    
सं॑साराटविनिस्तीर्णः
   
संसाराटविनिस्तीर्णः

Verse: b    
सार्थवाह इति स्मृतः ।
   
सा॑र्थवाहः इति स्मृतः

Verse: c    
व॑शवर्ती सर्वधर्मे
   
वशवर्ती सर्वधर्मे

Verse: d    
तेन धर्मेश्वरो जिनः ।। १६.६८ ।।
   
ते॑न धर्मेश्वरः जिनः ।। १६.६८ ।।

Strophe in ed. EBC: 69 
Verse: a    
स॑र्वधर्माधिराजेंद्रो
   
सर्वधर्माधिराजेन्द्रः

Verse: b    
धर्मचक्रप्रवर्तनात् ।
   
ध॑र्मचक्रप्रवर्तनात्

Verse: c    
ध॑र्मदानपतिः शास्ता
   
धर्मदानपतिः शास्ता

Verse: d    
धर्मस्वामी जगत्पतिः ।। १६.६९ ।।
   
ध॑र्मस्वामी जगत्पतिः ।। १६.६९ ।।

Strophe in ed. EBC: 70 
Verse: a    
य॑ष्टयज्ञः सुसिद्धार्थः
   
यष्टयज्ञः सुसिद्धार्थः

Verse: b    
पूर्णाशः सिद्धं मगलः ।
   
पू॑र्णाशः सिद्धं मगलः

Verse: c    
आ॑श्वासकः प्रेमदर्शी
   
आश्वासकः प्रेमदर्शी

Verse: d    
वीरः शूरे रणंजयः ।। १६.७० ।।
   
वी॑रः शूरे रणंजयः ।। १६.७० ।।

Strophe in ed. EBC: 71 
Verse: a    
उ॑त्तीर्णसर्वसंग्रामो
   
उत्तीर्णसर्वसङ्ग्रामो

Verse: b    
मुक्तः सर्वविमोचकः ।
   
मु॑क्तः सर्वविमोचकः

Verse: c    
ज॑गदालोकभूतः सत्
   
जगदालोकभूतः सत्

Verse: d    
प्रज्ञाज्ञानप्रभंकरः ।। १६.७१ ।।
   
प्र॑ज्ञाज्ञानप्रभंकरः ।। १६.७१ ।।

Strophe in ed. EBC: 72 
Verse: a    
अ॑ज्ञानध्वांतसंहर्ता
   
अज्ञानध्वान्तसंहर्ता

Verse: b    
महदुल्काप्रभंकरः ।
   
म॑हदुल्काप्रभंकरः

Verse: c    
म॑हावैद्यो महाज्ञानी
   
महावैद्यः महाज्ञानी

Verse: d    
सर्वक्लेशचिकित्सकः ।। १६.७२ ।।
   
स॑र्वक्लेशचिकित्सकः ।। १६.७२ ।।

Strophe in ed. EBC: 73 
Verse: a    
स॑र्वक्लेशाभिविद्धानां
   
सर्वक्लेशाभिविद्धानाम्

Verse: b    
क्लेशशल्यसमुद्धरः ।
   
क्ले॑शशल्यसमुद्धरः

Verse: c    
स॑र्वलक्षणसंपन्नः
   
सर्वलक्षणसंपन्नः

Verse: d    
सर्वव्यंजनमंडितः ।। १६.७३ ।।
   
स॑र्वव्यञ्जनमण्डितः ।। १६.७३ ।।

Strophe in ed. EBC: 74 
Verse: a    
स॑मंतभद्ररूपांगः
   
समन्तभद्ररूपाङ्गः

Verse: b    
शुद्धाचारविशुद्धधीः ।
   
शु॑द्धाचारविशुद्धधीः

Verse: c    
द॑शबली महाधीरो
   
दशबली महाधीरः

Verse: d    
वैशारद्यविशारदः ।। १६.७४ ।।
   
वै॑शारद्यविशारदः ।। १६.७४ ।।

Strophe in ed. EBC: 75 
Verse: a    
स॑र्वावेणिकसंपन्नो
   
सर्वावेणिकसंपन्नः

Verse: b    
महायानसमाश्रितः ।
   
म॑हायानसमाश्रितः

Verse: c    
स॑र्वधर्माधिपो नाथः
   
सर्वधर्माधिपः नाथः

Verse: d    
सर्वलोकाधिपः प्रभुः ।। १६.७५ ।।
   
स॑र्वलोकाधिपः प्रभुः ।। १६.७५ ।।

Strophe in ed. EBC: 76 
Verse: a    
स॑र्वविद्याधिपो विज्ञः
   
सर्वविद्याधिपः विज्ञः

Verse: b    
सर्ववादिमदांतकः ।
   
स॑र्ववादिमदान्तकः

Verse: c    
स॑र्वज्ञो ऽर्हन्महाभिज्ञो
   
सर्वज्ञः अर्हन् महाभिज्ञः

Verse: d    
महाबुद्धो मुनीश्वरः ।। १६.७६ ।।
   
म॑हाबुद्धः मुनीश्वरः ।। १६.७६ ।।

Strophe in ed. EBC: 77 
Verse: a    
दु॑ष्टमारमदोत्साह
   
दुष्टमारमदोत्साह

Verse: b    
निहंता विजयी कृती ।
   
नि॑हन्ता विजयी कृती

Verse: c    
सं॑बुद्धः सुगतः प्राज्ञः
   
संबुद्धः सुगतः प्राज्ञः

Verse: d    
सर्वसत्त्वहितार्थभृत् ।। १६.७७ ।।
   
स॑र्वसत्त्वहितार्थभृत् ।। १६.७७ ।।

Strophe in ed. EBC: 78 
Verse: a    
कृ॑तज्ञो ऽद्वयवादि सद्
   
कृतज्ञः अद्वयवादि सद्

Verse: b    
भद्रश्रीसद्गुणाकरः ।
   
भ॑द्रश्रीसद्गुणाकरः

Verse: c    
स॑र्वदुर्वृत्तिसंहर्ता
   
सर्वदुर्वृत्तिसंहर्ता

Verse: d    
सर्वसद्वृत्तिचारकः ।। १६.७८ ।।
   
स॑र्वसद्वृत्तिचारकः ।। १६.७८ ।।

Strophe in ed. EBC: 79 
Verse: a    
ज॑गन्नाथो जगद्धर्ता
   
जगन्नाथः जगद्धर्ता

Verse: b    
जगत्स्वामी जगत्प्रभुः ।
   
ज॑गत्स्वामी जगत्प्रभुः

Verse: c    
ज॑गद्गुरुर्जगच्छास्ता
   
जगद्गुरुः जगत्शास्ता

Verse: d    
जगद्धर्मगुणार्थभृत् ।। १६.७९ ।।
   
ज॑गद्धर्मगुणार्थभृत् ।। १६.७९ ।।

Strophe in ed. EBC: 80 
Verse: a    
स॑र्वदुःखाग्निसंताप
   
सर्वदुःखाग्निसंताप

Verse: b    
शमपूर्णसुधाकरः ।
   
श॑मपूर्णसुधाकरः

Verse: c    
स॑र्वदुःखमहांभोधि
   
सर्वदुःखमहांभोधि

Verse: d    
शोषणतीक्ष्णभानुभृत् ।। १६.८० ।।
   
शो॑षणतीक्ष्णभानुभृत् ।। १६.८० ।।

Strophe in ed. EBC: 81 
Verse: a    
स॑र्वधर्मार्थसंभर्ता
   
सर्वधर्मार्थसंभर्ता

Verse: b    
भद्रश्रीसद्गुणाश्रयं ।
   
भ॑द्रश्रीसद्गुणाश्रयम्

Verse: c    
बो॑धिमार्गाभिदेष्टा सन्
   
बोधिमार्गाभिदेष्टा सन्

Verse: d    
निवृत्तिमार्गदेशकः ।। १६.८१ ।।
   
नि॑वृत्तिमार्गदेशकः ।। १६.८१ ।।

Strophe in ed. EBC: 82 
Verse: a    
नि॑रंजनो निरासंगो
   
निरञ्जनः निरासंगः

Verse: b    
निर्विकल्पस्तथागतः ।
   
नि॑र्विकल्पः तथागतः

Verse: c    
ए॑ष संक्षिपनिर्देशो
   
एष संक्षिपनिर्देशः

Verse: d    
धर्मचक्रप्रवर्तने ।। १६.८२ ।।
   
ध॑र्मचक्रप्रवर्तने ।। १६.८२ ।।

Strophe in ed. EBC: 83 
Verse: a    
त॑थागतगुणोद्भावः
   
तथागतगुणोद्भावः

Verse: b    
परीत्तो वर्ण्यते मया ।
   
प॑रीत्तः वर्ण्यते मया

Verse: c    
बु॑द्धज्ञानमनंतं हि
   
बुद्धज्ञानम् अनन्तम् हि

Verse: d    
यथाकाशमनंतकं ।। १६.८३ ।।
   
य॑था आकाशम् अनन्तकम् ।। १६.८३ ।।

Strophe in ed. EBC: 84 
Verse: a    
प्र॑भाषन्क्षेपयेत्कल्पं
   
प्रभाषन् क्षेपयेत् कल्पम्

Verse: b    
न तु बुद्धगुणक्षयं ।
   
तु बुद्धगुणक्षयम्

Verse: c    
ए॑वं मयात्र संबुद्ध
   
एवम् मया अत्र संबुद्ध

Verse: d    
सद्गुणो ऽभ्यनुवर्ण्यते ।। १६.८४ ।।
   
स॑द्गुणः अभ्यनुवर्ण्यते ।। १६.८४ ।।

Strophe in ed. EBC: 85 
Verse: a    
श्रु॑त्वानुमोदनां कृत्वा
   
श्रुत्वा अनुमोदनाम् कृत्वा

Verse: b    
संचरध्वं सदा शुभे ।
   
सं॑चरध्वम् सदा शुभे

Verse: c    
इ॑दं मार्षा महायानं
   
इदम् मार्षा महायानम्

Verse: d    
संबुद्धधर्मसाधनं ।
   
सं॑बुद्धधर्मसाधनम्

Verse: e    
स॑र्वसत्त्वहिताधानं
   
सर्वसत्त्वहिताधानम्

Verse: f    
सर्वबुद्धैः प्रचारितं ।। १६.८५ ।।
   
स॑र्वबुद्धैः प्रचारितम् ।। १६.८५ ।।

Strophe in ed. EBC: 86 
Verse: a    
य॑थेदं धर्मपर्यायं
   
यथ इदम् धर्मपर्यायम्

Verse: b    
विस्तारितं सदा भवेत? ।
   
वि॑स्तारितम् सदा भवेत ? ।

Verse: c    
त॑था यूयं सदाभाष्य
   
तथा यूयम् सदाभाष्य

Verse: d    
संचारयितुमर्हथ ।। १६.८६ ।।
   
सं॑चारयितुम् अर्हथ ।। १६.८६ ।।

Strophe in ed. EBC: 87 
Verse: a    
यो॑ ऽपि मार्षा इमं धर्म
   
यः अपि मार्षाः इमम् धर्म

Verse: b    
पर्यायं श्रीशुभाकरं ।
   
प॑र्यायम् श्रीशुभाकरम्

Verse: c    
श्रु॑त्वा दृष्ट्वानुमोदित्वा
   
श्रुत्वा दृष्ट्वा अनुमोदित्वा

Verse: d    
सांजलिः प्रणमिष्यति ।। १६.८७ ।।
   
अञ्जलिः प्रणमिष्यति ।। १६.८७ ।।

Strophe in ed. EBC: 88 
Verse: a    
स॑ समुत्कृष्टरूपांगं
   
समुत्कृष्टरूपाङ्गम्

Verse: b    
लप्स्यते बलमुत्तमं ।
   
ल॑प्स्यते बलम् उत्तमम्

Verse: c    
स॑ज्जनपरिवारं च
   
सज्जनपरिवारम्

Verse: d    
प्रतिभानं समुत्तमं ।। १६.८८ ।।
   
प्र॑तिभानम् समुत्तमम् ।। १६.८८ ।।

Strophe in ed. EBC: 89 
Verse: a    
अ॑विघ्नसुखनैष्कर्म्यं
   
अविघ्नसुखनैः कर्म्यम्

Verse: b    
समुत्कृष्टवरेंद्रियं ।
   
स॑मुत्कृष्टवरेन्द्रियम्

Verse: c    
शु॑द्धप्रज्ञावभासं च
   
शुद्धप्रज्ञावभासम्

Verse: d    
भद्रसमाधिसंपदं ।। १६.८९ ।।
   
भ॑द्रसमाधिसंपदम् ।। १६.८९ ।।

Strophe in ed. EBC: 90 
Verse: a    
इ॑मानष्टौ समुत्कृष्टान्
   
इमान् अष्टौ समुत्कृष्टान्

Verse: b    
सद्धर्मान्स लभेद्ध्रुवं ।
   
स॑द्धर्मान् लभेत् ध्रुवम्

Verse: c    
श्रु॑त्वेमं यः प्रसन्नात्मा
   
श्रुत्वा इमम् यः प्रसन्नात्मा

Verse: d    
दृष्ट्वा च सांजलिर्भवेत् ।। १६.९० ।।
   
दृ॑ष्ट्वा अञ्जलिः भवेत् ।। १६.९० ।।

Strophe in ed. EBC: 91 
Verse: a    
य॑श्चाप्येतन्महाधर्म
   
यः अपि एतत् महाधर्म

Verse: b    
भाणकस्य महामतेः ।
   
भा॑णकस्य महामतेः

Verse: c    
ध॑मासनं सभामध्ये
   
धमासनम् सभामध्ये

Verse: d    
प्रज्ञपयेत्प्रमोदितः ।। १६.९१ ।।
   
प्र॑ज्ञपयेत् प्रमोदितः ।। १६.९१ ।।

Strophe in ed. EBC: 92 
Verse: a    
स॑ हि साधुर्लभेन्नूनं
   
हि साधुः लभेत् नूनम्

Verse: b    
महाश्रेष्ठजनासनं ।
   
म॑हाश्रेष्ठजनासनम्

Verse: c    
गृ॑हपत्यासनं चापि
   
गृहपत्यासनम् अपि

Verse: d    
चक्रवर्तिनृपासनं ।। १६.९२ ।।
   
च॑क्रवर्तिनृपासनम् ।। १६.९२ ।।

Strophe in ed. EBC: 93 
Verse: a    
लो॑कपालासनं चापि
   
लोकपालासनम् अपि

Verse: b    
शक्रासनमपि ध्रुवं ।
   
श॑क्रासनम् अपि ध्रुवम्

Verse: c    
व॑शवर्त्यासनं चापि
   
वशवर्त्यासनम् अपि

Verse: d    
ब्रह्मासनं समुत्तमं ।। १६.९३ ।।
   
ब्र॑ह्मासनम् समुत्तमम् ।। १६.९३ ।।

Strophe in ed. EBC: 94 
Verse: a    
बो॑धिमंडगतस्यापि
   
बोधिमण्डगतस्य अपि

Verse: b    
बोधिसत्त्वस्य संमते ।
   
बो॑धिसत्त्वस्य संमते

Verse: c    
बो॑धिप्राप्तस्य सद्धर्म
   
बोधिप्राप्तस्य सद्धर्म

Verse: d    
देशकस्य सभासनं ।। १६.९४ ।।
   
दे॑शकस्य सभासनम् ।। १६.९४ ।।

Strophe in ed. EBC: 95 
Verse: a    
इ॑मान्यष्टौ स शुद्धात्मा
   
इमानि अष्टौ शुद्धात्मा

Verse: b    
प्रालभेदासनान्यपि ।
   
प्रा॑लभेत् आसनानि अपि

Verse: c    
यो॑ धर्मभाषमाणस्य
   
यः धर्मभाषमाणस्य

Verse: d    
प्रज्ञपयेन्मुदासनं ।। १६.९५ ।।
   
प्र॑ज्ञपयेत् मुदासनम् ।। १६.९५ ।।

Strophe in ed. EBC: 96 
Verse: a    
य॑ इमं धर्मपर्यायं
   
यः इमम् धर्मपर्यायम्

Verse: b    
भाषमाणाय साधवे ।
   
भा॑षमाणाय साधवे

Verse: c    
सा॑धुकारं समालोक्य
   
साधुकारम् समालोक्य

Verse: d    
संप्रदद्यात्प्रसादितः ।। १६.९६ ।।
   
सं॑प्रदद्यात् प्रसादितः ।। १६.९६ ।।

Strophe in ed. EBC: 97 
Verse: a    
स॑ सत्यशुद्धवादी स्याद्
   
सत्यशुद्धवादी स्यात्

Verse: b    
आदेयवचनो ऽपि च ।
   
आ॑देयवचनः अपि

Verse: c    
म॑नोज्ञग्राह्यवाक्यो ऽपि
   
मनोज्ञग्राह्यवाक्यः अपि

Verse: d    
श्लक्ष्णमधुरनिस्वतः ।। १६.९७ ।।
   
श्ल॑क्ष्णमधुरनिस्वतः ।। १६.९७ ।।

Strophe in ed. EBC: 98 
Verse: a    
क॑लविंकस्वरश्चापि
   
कलविंकस्वरः अपि

Verse: b    
गंभीरमधुरस्वरः ।
   
गं॑भीरमधुरस्वरः

Verse: c    
शु॑चिब्रह्मस्वरश्चापि
   
शुचिब्रह्मस्वरः अपि

Verse: d    
सिंहघोषमहास्वरः ।। १६.९८ ।।
   
सिं॑हघोषमहास्वरः ।। १६.९८ ।।

Strophe in ed. EBC: 99 
Verse: a    
सं॑बुद्धसत्यवाद्येतद्
   
संबुद्धसत्यवादी एतत्

Verse: b    
अष्टौ वाचो गुणांल्लभेत् ।
   
अ॑ष्टौ वाचः गुणान् लभेत्

Verse: c    
स॑द्धर्मभाषमाणस्य
   
सद्धर्मभाषमाणस्य

Verse: d    
साधुकारं ददाति यः ।। १६.९९ ।।
   
सा॑धुकारम् ददाति यः ।। १६.९९ ।।

Strophe in ed. EBC: 100 
Verse: a    
य॑श्चेमं धर्मपर्यायं
   
यः इमम् धर्मपर्यायम्

Verse: b    
लिखित्वा पुस्तके गृहे ।
   
लि॑खित्वा पुस्तके गृहे

Verse: c    
प्र॑तिष्ठाप्य सदाभ्यर्च्य
   
प्रतिष्ठाप्य सदाभ्यर्च्य

Verse: d    
सत्कारैर्मानयन्भजेत् ।। १६.१०० ।।
   
स॑त्कारैः मानयन् भजेत् ।। १६.१०० ।।

Strophe in ed. EBC: 101 
Verse: a    
अ॑स्य च वर्णमुच्चार्य
   
अस्य वर्णम् उच्चार्य

Verse: b    
प्रचारयेत्समंततः ।
   
प्र॑चारयेत् समन्ततः

Verse: c    
ल॑प्स्यते स महासाधुः
   
लप्स्यते महासाधुः

Verse: d    
स्मृतिनिधानमुत्तमं ।। १६.१०१ ।।
   
स्मृ॑तिनिधानम् उत्तमम् ।। १६.१०१ ।।

Strophe in ed. EBC: 102 
Verse: a    
म॑हाप्रतिनिधानं च
   
महाप्रतिनिधानम्

Verse: b    
गतिनिधानमुत्तमं ।
   
ग॑तिनिधानम् उत्तमम्

Verse: c    
सु॑धारणीनिधानं च
   
सुधारणीनिधानम्

Verse: d    
निधानं प्रतिभानकं ।। १६.१०२ ।।
   
नि॑धानम् प्रतिभानकम् ।। १६.१०२ ।।

Strophe in ed. EBC: 103 
Verse: a    
बो॑धिचित्तनिधानं च
   
बोधिचित्तनिधानम्

Verse: b    
धर्मनिधानमुत्तमं ।
   
ध॑र्मनिधानम् उत्तमम्

Verse: c    
प्र॑तिपत्तिनिधानं च
   
प्रतिपत्तिनिधानम्

Verse: d    
सद्धर्मगुणसाधनं ।। १६.१०३ ।।
   
स॑द्धर्मगुणसाधनम् ।। १६.१०३ ।।

Strophe in ed. EBC: 104 
Verse: a    
इ॑मान्यष्टौ निधानानि
   
इमानि अष्टौ निधानानि

Verse: b    
लप्स्यते स महामतिः ।
   
ल॑प्स्यते महामतिः

Verse: c    
लि॑खित्वेदं मुदा यश्च
   
लिखित्व इदम् मुदा यः

Verse: d    
प्रतिष्ठाप्य सदा भजेत् ।। १६.१०४ ।।
   
प्र॑तिष्ठाप्य सदा भजेत् ।। १६.१०४ ।।

Strophe in ed. EBC: 105 
Verse: a    
य॑श्चेमं धर्मपर्यायं
   
यः इमम् धर्मपर्यायम्

Verse: b    
स्वयं धृत्वा प्रवर्तयेत् ।
   
स्व॑यम् धृत्वा प्रवर्तयेत्

Verse: c    
स॑ पुमान्दानसंभारं
   
पुमान् दानसंभारम्

Verse: d    
संपूरयेज्जगद्धिते ।। १६.१०५ ।।
   
सं॑पूरयेत् जगद्धिते ।। १६.१०५ ।।

Strophe in ed. EBC: 106 
Verse: a    
त॑तश्च शीलसंभारं
   
ततः शीलसंभारम्

Verse: b    
श्रुतसंभारमुत्तमं ।
   
श्रु॑तसंभारम् उत्तमम्

Verse: c    
त॑तः शमथसंभारं
   
ततः शमथसंभारम्

Verse: d    
तथा विपश्यनाभिधं ।। १६.१०६ ।।
   
त॑था विपश्यनाभिधम् ।। १६.१०६ ।।

Strophe in ed. EBC: 107 
Verse: a    
स॑द्धर्मपुण्यसंभारं
   
सद्धर्मपुण्यसंभारम्

Verse: b    
ज्ञानसंभारमुत्तमं ।
   
ज्ञा॑नसंभारम् उत्तमम्

Verse: c    
म॑हाकारुण्यसंभारं
   
महाकारुण्यसंभारम्

Verse: d    
संबुद्धगुणसाधनं ।। १६.१०७ ।।
   
सं॑बुद्धगुणसाधनम् ।। १६.१०७ ।।

Strophe in ed. EBC: 108 
Verse: a    
स॑ संभारानिमानष्टौ
   
संभारान् इमान् अष्टौ

Verse: b    
लप्स्यते संप्रमोदितः ।
   
ल॑प्स्यते संप्रमोदितः

Verse: c    
य॑ इमं धर्मपर्यायं
   
यः इमम् धर्मपर्यायम्

Verse: d    
स्वयं धृत्वा प्रचारयेत् ।। १६.१०८ ।।
   
स्व॑यम् धृत्वा प्रचारयेत् ।। १६.१०८ ।।

Strophe in ed. EBC: 109 
Verse: a    
य॑श्चेमं धर्मपर्यायं
   
यः इमम् धर्मपर्यायम्

Verse: b    
परेभ्य उपदेश्यते ।
   
प॑रेभ्यः उपदेश्यते

Verse: c    
स॑ महत्पुण्यशुद्धात्मा
   
महत्पुण्यशुद्धात्मा

Verse: d    
भवेच्छ्रीमान्महर्द्धिकः ।। १६.१०९ ।।
   
भ॑वेत् श्रीमान्महर्द्धिकः ।। १६.१०९ ।।

Strophe in ed. EBC: 110 
Verse: a    
च॑क्रवर्ती नृपेंद्रः स्याल्
   
चक्रवर्ती नृपेन्द्रः स्यात्

Verse: b    
लोकपालाधिपो ऽपि च ।
   
लो॑कपालाधिपः अपि

Verse: c    
श॑क्रो देवाधिपश्चापि
   
शक्रः देवाधिपः अपि

Verse: d    
यामलोकाधिपो ऽपि च ।। १६.११० ।।
   
या॑मलोकाधिपः अपि ।। १६.११० ।।

Strophe in ed. EBC: 111 
Verse: a    
तु॑षिताधिपतिश्चापि
   
तुषिताधिपतिअः अपि

Verse: b    
सुनिर्मिताधिपो ऽपि च ।
   
सु॑निर्मिताधिपः अपि

Verse: c    
व॑शवर्तीश्वरश्चापि
   
वशवर्तीः वरः अपि

Verse: d    
ब्रह्मलोकाधिपो ऽपि च ।। १६.१११ ।।
   
ब्र॑ह्मलोकाधिपः अपि ।। १६.१११ ।।

Strophe in ed. EBC: 112 
Verse: a    
म॑हाब्रह्मा मुनींद्रो ऽपि
   
महाब्रह्मा मुनिइन्द्रः अपि

Verse: b    
प्रांते बुद्धो भवेदपि ।
   
प्रा॑न्ते बुद्धः भवेत् अपि

Verse: c    
इ॑मान्यष्टौ सुपुण्यानि
   
इमानि अष्टौ सुपुण्यानि

Verse: d    
लप्स्यते स विशुद्धधीः ।। १६.११२ ।।
   
ल॑प्स्यते विशुद्धधीः ।। १६.११२ ।।

Strophe in ed. EBC: 113 
Verse: a    
य॑श्चेमं धर्मपर्यायं
   
यः इमम् धर्मपर्यायम्

Verse: b    
भाष्यमाणं समाहितः ।
   
भा॑ष्यमाणम् समाहितः

Verse: c    
श्रो॑ष्यति सुप्रसन्नात्मा
   
श्रोष्यति सुप्रसन्नात्मा

Verse: d    
श्रद्धाभक्तिसमन्वितः ।। १६.११३ ।।
   
श्र॑द्धाभक्तिसमन्वितः ।। १६.११३ ।।

Strophe in ed. EBC: 114 
Verse: a    
स॑ सुनिर्मलचित्तः स्यात्
   
सुनिर्मलचित्तः स्यात्

Verse: b    
महामैत्रीप्रसन्नधीः ।
   
म॑हामैत्रीप्रसन्नधीः

Verse: c    
म॑हाकारुण्यभद्रात्मा
   
महाकारुण्यभद्रात्मा

Verse: d    
महानंदप्रमोदितः ।। १६.११४ ।।
   
म॑हानन्दप्रमोदितः ।। १६.११४ ।।

Strophe in ed. EBC: 115 
Verse: a    
स॑दोपेक्षाप्रसन्नात्मा
   
सदोपेक्षाप्रसन्नात्मा

Verse: b    
चतुर्ध्यानाभिनंदितः ।
   
च॑तुर्ध्यानाभिनन्दितः

Verse: c    
स॑मारूप्यसमापत्ति
   
समारूप्यसमापत्ति

Verse: d    
संप्राप्तो ऽभिहतेंद्रियः ।। १६.११५ ।।
   
सं॑प्राप्तः अभिहतेन्द्रियः ।। १६.११५ ।।

Strophe in ed. EBC: 116 
Verse: a    
पं॑चाभिज्ञपदप्राप्तो
   
पञ्चाभिज्ञपदप्राप्तः

Verse: b    
वासनासंधिघातकः ।
   
वा॑सनासंधिघातकः

Verse: c    
शु॑रंगमसमाधिसं
   
शुरंगमसमाधिसं

Verse: d    
प्राप्तो भवेन्महर्द्धिकः ।। १६.११६ ।।
   
प्रा॑प्तः भवेत् महर्द्धिकः ।। १६.११६ ।।

Strophe in ed. EBC: 117 
Verse: a    
इ॑मा अष्टौ स शुद्धात्मा
   
इमाः अष्टौ शुद्धात्मा

Verse: b    
सर्वनिर्मलता लभेत् ।
   
स॑र्वनिर्मलता लभेत्

Verse: c    
य॑त्रायं धर्मपर्यायः
   
यत्र अयम् धर्मपर्यायः

Verse: d    
प्रचरिष्यति सर्वतः ।। १६.११७ ।।
   
प्र॑चरिष्यति सर्वतः ।। १६.११७ ।।

Strophe in ed. EBC: 118 
Verse: a    
त॑त्रापि राज्यसंक्षोभ
   
तत्र अपि राज्यसंक्षोभ

Verse: b    
भयं नैव भवेत्क्वचित् ।
   
भ॑यम् एव भवेत् क्वचित्

Verse: c    
दु॑ष्टचैरभयं चापि
   
दुष्टचैः अभयम् अपि

Verse: d    
दुष्टव्याडभयान्यपि ।। १६.११८ ।।
   
दु॑ष्टव्याडभयानि अपि ।। १६.११८ ।।

Strophe in ed. EBC: 119 
Verse: a    
ई॑तिदुर्भिक्षकांतार
   
ईतिदुर्भिक्षकान्तार

Verse: b    
भयं चापि भवेन्न हि ।
   
भ॑यम् अपि भवेत् हि

Verse: c    
वि॑वादविग्रहोत्पन्नं
   
विवादविग्रहोत्पन्नम्

Verse: d    
भयं चापि सरेन्न हि ।। १६.११९ ।।
   
भ॑यम् अपि सरेत् हि ।। १६.११९ ।।

Strophe in ed. EBC: 120 
Verse: a    
स॑र्वदेवभयं चापि
   
सर्वदेवभयम् अपि

Verse: b    
नागयक्षादितो भयं ।
   
ना॑गयक्षादितः भयम्

Verse: c    
स॑र्वोपद्रवभयं च
   
सर्वोपद्रवभयम्

Verse: d    
भवेन्नैव कदाचन ।। १६.१२० ।।
   
भ॑वेत् एव कदाचन ।। १६.१२० ।।

Strophe in ed. EBC: 121 
Verse: a    
ने॑मान्यष्टौ भयान्यत्र
   
इमानि अष्टौ भयानि अत्र

Verse: b    
चरेद्धर्ममिदं यतः ।
   
च॑रेत् धर्मम् इदम् यतः

Verse: c    
सं॑क्षेपात्कथ्यते मार्षा
   
संक्षेपात् कथ्यते मार्षा

Verse: d    
यदेतद्धारणादिजं ।। १६.१२१ ।।
   
य॑त् एतत् धारणादिजम् ।। १६.१२१ ।।

Strophe in ed. EBC: 122 
Verse: a    
पु॑ण्यं महत्तरं श्रेष्ठं
   
पुण्यम् महत्तरम् श्रेष्ठम्

Verse: b    
सर्वबुद्धैर्निगद्यते ।
   
स॑र्वबुद्धैः निगद्यते

Verse: c    
य॑द्यपि प्राणिनः सर्वे
   
यदि अपि प्राणिनः सर्वे

Verse: d    
भवेयुर्ब्रह्मचारिणः ।। १६.१२२ ।।
   
भ॑वेयुः ब्रह्मचारिणः ।। १६.१२२ ।।

Strophe in ed. EBC: 123 
Verse: a    
ता॑न्सर्वान्पूजयेत्कश्चित्
   
तान् सर्वान् पूजयेत् कःचित्

Verse: b    
सत्कृत्य श्रद्धया सदा ।
   
स॑त्कृत्य श्रद्धया सदा

Verse: c    
त॑स्मादिदं महत्पुण्यं
   
तस्मात् इदम् महत्पुण्यम्

Verse: d    
विशिष्टं कथ्यते जिनैः ।। १६.१२३ ।।
   
वि॑शिष्टम् कथ्यते जिनैः ।। १६.१२३ ।।

Strophe in ed. EBC: 124 
Verse: a    
य॑श्चैकं पूजयेदेकं
   
यः एकम् पूजयेत् एकम्

Verse: b    
प्रत्येकसुगतं मुदा ।
   
प्र॑त्येकसुगतम् मुदा

Verse: c    
भ॑वेयुस्ते प्रत्येकबुद्धास्
   
भवेयुः ते प्रत्येकबुद्धाः

Verse: d    
तान्कश्चित्पूजयेत्ततः ।। १६.१२४ ।।
   
ता॑न् कःचित् पूजयेत् ततः ।। १६.१२४ ।।

Strophe in ed. EBC: 125 
Verse: a    
पु॑ण्यं विशिष्टमेकस्य
   
पुण्यम् विशिष्टम् एकस्य

Verse: b    
बोधिसत्त्वस्य पूजनात् ।
   
बो॑धिसत्त्वस्य पूजनात्

Verse: c    
ते॑ सर्वे बोधिसत्त्वाश्च
   
ते सर्वे बोधिसत्त्वाः

Verse: d    
भवेयुः कश्चिदर्चयेत् ।। १६.१२५ ।।
   
भ॑वेयुः कःचित् अर्चयेत् ।। १६.१२५ ।।

Strophe in ed. EBC: 126 
Verse: a    
त॑स्माद्विशिष्टं पुण्यं च
   
तस्मात् विशिष्टम् पुण्यम्

Verse: b    
बुद्धस्यैकस्य पूजनात् ।
   
बु॑द्धस्य एकस्य पूजनात्

Verse: c    
जि॑ना भवेयुः सर्वे तान्
   
जिना भवेयुः सर्वे तान्

Verse: d    
पूजयेत्कश्चिदानतः ।
   
पू॑जयेत् कःचित् आनतः

Verse: e    
त॑द्विशिष्टं लभेद्यश्च
   
तत् विशिष्टम् लभेत् यः

Verse: f    
शृणुयाच्छ्रावयेदपि ।। १६.१२६ ।।
   
शृ॑णुयात् श्रावयेत् अपि ।। १६.१२६ ।।


Strophe in ed. EBC: 127 
Verse: a    
य॑श्चापि सद्धर्मविलोपकाले
   
यः अपि सद्धर्मविलोपकाले

Verse: b    
स्नेहं विहाय स्वशरीरजीवे ।
   
स्ने॑हम् विहाय स्वशरीरजीवे

Verse: c    
ब्र॑वीत्यहोरात्रमिदं सुभाष्यं
   
ब्रवीति अहोरात्रम् इदम् सुभाष्यम्

Verse: d    
विशिष्यते पुण्यमिदं हि तस्मात् ।। १६.१२७ ।।
   
वि॑शिष्यते पुण्यम् इदम् हि तस्मात् ।। १६.१२७ ।।

Strophe in ed. EBC: 128 
Verse: a    
यो॑ ऽभीच्छते पूजयितुं मुनींद्रान्
   
यः अभीच्छते पूजयितुम् मुनीन्द्रान्

Verse: b    
प्रत्येकबुद्धांश्च सदार्हतो ऽपि ।
   
प्र॑त्येकबुद्धाः सदार्हतः अपि

Verse: c    
दृ॑ढं समुत्पाद्य स बोधिचित्तम्
   
दृढम् समुत्पाद्य बोधिचित्तम्

Verse: d    
इदं सुभाष्यं च ब्रवीतु धर्मं ।। १६.१२८ ।।
   
इ॑दम् सुभाष्यम् ब्रवीतु धर्मम् ।। १६.१२८ ।।

Strophe in ed. EBC: 129 
Verse: a    
र॑त्नं त्विदं सर्वसुभाषितानां
   
रत्नम् तु इदम् सर्वसुभाषितानाम्

Verse: b    
यद्धाष्यते सत्त्वहिताय बुद्धैः ।
   
य॑त् धाष्यते सत्त्वहिताय बुद्धैः

Verse: c    
गृ॑हे स्थितस्तस्य तथागतो ऽपि
   
गृहे स्थितह् तस्य तथागतः अपि

Verse: d    
तिष्ठेदिदं यत्र सुभाषितं तत् ।। १६.१२९ ।।
   
ति॑ष्ठेत् इदम् यत्र सुभाषितम् तत् ।। १६.१२९ ।।

Strophe in ed. EBC: 130 
Verse: a    
प्र॑भां स प्राप्नोति शुभामनं ताम्
   
प्रभाम् प्राप्नोति शुभामनम् ताम्

Verse: b    
एकं पदं वा समुपादिशेद्यः ।
   
ए॑कम् पदम् वा समुपादिशेत् यः

Verse: c    
न॑ व्यंजनाद्भ्रश्यति नापि चार्थाद्
   
व्यञ्जनात् भ्रश्यति अपि चार्थात्

Verse: d    
ददाति यः सूत्रमिदं परेभ्यः ।। १६.१३० ।।
   
द॑दाति यः सूत्रम् इदम् परेभ्यः ।। १६.१३० ।।

Strophe in ed. EBC: 131 
Verse: a    
अ॑नुत्तरो ऽसौ नरनायकानां
   
अनुत्तरः असौ नरनायकानाम्

Verse: b    
सत्त्वो न कश्चित्सदृशो ऽस्ति तस्य ।
   
स॑त्त्वः कःचित् सदृशः अस्ति तस्य

Verse: c    
भ॑वेत्स रत्नेन समो ऽक्षयश्रीः
   
भवेत् रत्नेन समः अक्षयश्रीः

Verse: d    
श्रुत्वापि यो धर्ममिमं प्रसन्नः ।। १६.१३१ ।।
   
श्रु॑त्वा अपि यः धर्मम् इमम् प्रसन्नः ।। १६.१३१ ।।

Strophe in ed. EBC: 132 
Verse: a    
त॑स्मादिदं धर्ममुदारकामाः
   
तस्मात् इदम् धर्मम् उदारकामाः

Verse: b    
शृण्वंतु नित्यं शुभपुण्यहेतुं ।
   
शृ॑ण्वन्तु नित्यम् शुभपुण्यहेतुम्

Verse: c    
श्रु॑त्वानुमोद्य प्रणिधाय बोधौ
   
श्रुत्वा अनुमोद्य प्रणिधाय बोधौ

Verse: d    
भक्त्या त्रिरत्नं सततं भजंतु ।। १६.१३२ ।।
   
भ॑क्त्या त्रिरत्नम् सततम् भजन्तु ।। १६.१३२ ।।


इ॑ति श्रीबुद्धचरिते महाकाव्ये ऽश्वघोषकृते धर्मचक्रप्रवर्तनं नाम षोडशः सर्गः ।। १६ ।।



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This text is part of the TITUS edition of Asvaghosa, Buddhacarita.

Copyright TITUS Project, Frankfurt a/M, 10.12.2008. No parts of this document may be republished in any form without prior permission by the copyright holder.